महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के संकट, रोजी-रोटी के सवालों को छोड़कर सत्तारूढ़ और सभी विपक्षी पार्टियां जाति गोलबंदी और ध्रुवीकरण पर उतरीं, लेकिन लोगों का मूड हालात बदलने की दिशा में
क्या सर्वांगीण विकास, महंगाई, बेरोजगारी, पलायन व कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे की इन चुनावों में कोई भूमिका होगी या ये चुनाव भी जातिवाद, क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की भेंट चढ़ जाएंगे?