आखिर पच्चीस साल बाद पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री के बेहिचक दौरे से इजरायल को लेकर नैतिक बाधा और दोहरापन मिटा, असल में पश्चिम एशिया के हालात बदले तो भारत की प्राथमिकताएं भी बदलीं
मौका और मुद्दे स्पष्ट होने के बावजूद विपक्ष फिलहाल दिखता तो है बेजार मगर उसमें दमखम वाले नेताओं की कमी नहीं, अगर परिदृश्य बदला तो मोर्चे पर आगे कौन होंगे सूरमा और कौन बनेंगे सूत्रधार
गर्मी बीत गई और गर्मी की छुट्टियां भी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मौज-मस्ती भी विदा हो गई। मानसून की दस्तक से सब कुछ खिल जाता है। टिप-टिप बूंदों से लेकर गुलाबी ठंडक तक ऐसा कौन सा काम है जिसे मुल्तवी किया जाना मुश्किल है। यकीनन फिल्म देखना। 'रीयल मूवी बफ॑’ लोगों के लिए आने वाले छह महीने समझिए लॉटरी लगने के दिन हैं। एक्शन, इमोशन, ड्रामा, साइंस फिक्शन, कॉमेडी, थ्रिलर, रोमांस बस गिनते जाइए। कुछ फिल्में, जिनमें कोई पसंदीदा हीरो सालों बाद दिखाई देगा। कुछ के ट्रेलर लुभा रहे हैं। 70 एमएम के पर्दे पर रोमांच इंतजार कर रहा है। इस लिस्ट को संभाल कर रख लीजिए और हां मार्कर से मनपसंद तारीख को हाईलाइट करना बिलकुल मत भूलिए।
डोकलाम का पठार चीन और भारत दोनों की कमजोरी, दोनों के लिए यह रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण, सो, चीन धीरे-धीरे जमीन पर अपना निर्विवाद आधार तैयार करने की कोशिश में