सांप्रदायिक ताकतों के विघटनकारी मंसूबों की काट के लिए राहुल जैसे साहसी नेता की दरकार
असल में राजनीतिक दल और नेता लोगों को लुभाने के आसान उपाय ढूंढ़ रहे हैं। यही वजह है कि असली मुद्दों की तरफ ध्यान ही नहीं है। फिर आरोप-प्रत्यारोप के लिए जिस तरह तथ्यों की अनदेखी की जा रही है, उससे राजनीति नीचे की ओर ही जा रही है
कांग्रेस उपाध्यक्ष के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी की कमान संभालते ही कई चुनौतियां सामने
फिलहाल तो यह कांटों का ताज है, इसे कब और कैसे फूलों की माला बना पाएंगे राहुल
किसानों, कामगारों, मजदूर और वंचितों के लिए संघर्ष करना है उनका मकसद
राहुल या उनके परिवार के किसी में न तो गांधी के असली गुण हैं और न ही नेहरू जैसा प्रभामंडल
जातीय समीकरण हावी होने से विकास गायब, लोगों की नाराजगी भी नतीजों को कर सकती है प्रभावित
राज्य के स्थानीय चुनावों में प्रदर्शन तय कर सकता है बसपा की दलित सियासत की दिशा
भोपाल एम्स में न तो पूरे डॉक्टर हैं, न ही हर इलाज की सुविधा
हाथियों के हमले से इस साल जा चुकी हैं 44 लोगों की जान, फसलों को भी होता है भारी नुकसान
शिक्षा पर फोकस से सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदली, छात्र-अभिभावकों में पब्लिक स्कूलों का आकर्षण घटा
असली चुनौती बाकी, दक्षिण अफ्रीका के तेज विकेट पर होगा कड़ा इम्तिहान
संजय मिश्रा आज के दौर का जाना-पहचाना नाम हैं। कॅरिअर और जिंदगी के बीच संतुलन साधता यह अभिनेता सहजता की मिसाल है
संगीतकार कनु राय इतने तंगहाल थे कि उनके पास अपना हारमोनियम तक न था
वैसे भी उत्सवप्रिय हैं हम लोग
हर दौर में राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए साहित्य, फिल्म और अन्य विधाओं को लेकर जनता की भावनाएं भड़काती हैं
किडनी देने वालों में लगभग 85 प्रतिशत महिलाएं जबकि पाने वालों में उनका प्रतिशत सिर्फ दस
सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने की बढ़ती संभावनाओं, घटती लागत और बैट्री की दुनिया में आई तकनीकी छलांग से आसान हुआ हरित ऊर्जा क्रांति का सफर
आइटी क्षेत्र में बुलंदी का अगला मुकाम बनने को पाकिस्तान कितना तैयार? भारत में तो नौकरियां खत्म होने का सिलसिला जारी
नए लेखकों और उपेक्षित भाषा-बोलियों के साहित्य पर जोर से किताबों की बिक्री और नए इलाकों में पहुंच बढ़ी
किसानों का आय बढ़ाने में राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके लिए सरकार के साथ-साथ बाकी हितधारकों को भी मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे
स्वीडिश पत्रकार ने बरसों से जुटाई जानकारी रखी है सामने
कुछ साल से भारत में राजनीतिक-सामाजिक हिंसा बढ़ती जा रही है
वादों-प्रतिवादों के बीच भी कुंवर नारायण को ‘स्वीकृति’ मिली तो यह उनके ‘नैतिक’ लेखन का ही बल था