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मैगज़ीन डिटेल

नाकामियों पर राष्ट्रवाद का उन्मादी मुलम्मा

नोटबंदी और जीएसटी के कारण पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर दिखाने के लिए मनगढ़ंत आंकड़ों का सहारा ले रही सरकार, क्या राष्ट्रवाद के ज्वार में आर्थिक परेशानियों को भूल जाएंगे आम लोग

नारों से आगे ही है जहां

मतदाताओं को गंभीरता से सोचना होगा कि क्या वे नारों के बीच ही झूलते रहेंगे या फिर अपने बेहतर भविष्य के लिए कुछ मुश्किल सवाल राजनीतिक दलों के सामने खड़े करेंगे, क्योंकि आने वाले दिन मुश्किल भरे हैं

सत्ता का दम, दंभ और दर्द

आम चुनाव भावनात्मक मुद्दों का मोहफांस तोड़कर जीवन के असली मुद्दों की उपेक्षा का जवाब तलाशने का वक्त

अपनी आर्थिक लाचारी का जवाब मांगने का वक्त

दिल्ली की गद्दी को सबसे अधिक समर्थन देने वाली हिंदी पट्टी उन्हीं के जरिए छली गई, जिन पर उसने भरोसा किया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ये मुद्दे हिंदी पट्टी के लोगों के चुनावी नतीजे क्यों नहीं प्रभावित करते?

चाहिए सांस्कृतिक पुनर्जागरण

पार्टियां अंधविश्वासों-रूढ़ियों को कैश करती हैं, जरूरत है इनसे निकलकर रोजगार, आय के स्रोतों की

जमीनी मुद्दे या चमत्कार!

सपा-बसपा से मिल रही चुनौती और मुद्दों से बचने के लिए भाजपा को राष्ट्रवाद का सहारा, कांग्रेस भी जोश में

मुश्किल चढ़ाई पहाड़ की

राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने की कोशिश में लगी भाजपा को असहज करने वाले कई और मुद्दे कांग्रेस की तरकश में

चौधराहट की मुश्किल लड़ाई

जेजेपी, एलएसपी, आप जैसे दलों के प्रदर्शन से तय होगी भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के मुकाबले की तस्वीर

कांग्रेस की किलेबंदी मजबूत पर पेच कई

विपक्ष में टूट, तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद भी नहीं चढ़ पाई सिरे

चेहरे नहीं, मुद्दे हावी

भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने स्थानीय मुद्दों से पार पाने की चुनौती

जाति गठजोड़ों पर ही जोर

सहयोगियों के सामने भाजपा के झुकने और महागठबंधन में सबको मनमाफिक सीटें नहीं मिलने से बगावत की आशंका, मतदाता भ्रमित

किसकी किल्ली खोलेगी दिल्ली

इस चुनाव में तीनों बड़े दावेदारों की गहमागहमी ही बताती है कि बड़ी गद्दी के लिए महज सात सीटों वाली दिल्ली की अहमियत कितनी

टूटेगी दो दशक पुरानी परंपरा?

राज्य में विधानसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी को ही लोकसभा चुनावों में भी अच्छी जीत मिलती रही है, भाजपा को परंपरा टूटने की उम्मीद

अब असली इम्तिहान

नतीजों पर टिका मुख्यमंत्री बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का भविष्य

असली मुद्दों पर कड़ा मुकाबला

विधानसभा चुनावों में भाजपा के इस गढ़ को ढहाने वाली कांग्रेस के लिए आम चुनाव आसान नहीं, बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे हैं अहम

उम्मीद भरी नई सियासी पौध

आइएएस से नेता बने शाह फैसल ने युवा आकांक्षाओं को चढ़ाया परवान, लेकिन राजनैतिक दल बनाने से नाराज विरोधी बता रहे एजेंट

अनुच्छेद 370 से ही तो है कश्मीर अभिन्न

संघीय ढांचे को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि विविधता को भी बचाए रखा जाए

कटप्पा चला कपूरथला

हमारे फिल्म उद्योग की भाषायी दीवारें ढह रही हैं और इससे अखिल भारतीय सितारों का उदय हो रहा है

शिक्षा पर संदेह का परिणाम

अज्ञान की मार्केटिंग आसान होती है, वह फास्ट सेलिंग आइटम है, देखते-देखते ही बिक जाता है

युद्ध और चुनाव का घातक घालमेल

ऐसे नियम-कायदों की आवश्यकता है जो राजनैतिक प्रचार के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सेना की कार्रवाई को भुनाने और उन्हें चुनावी अखाड़े में खींचने से रोक सके

आंकड़ों से डर लगे, साहेब!

एनएसएसओ और मुद्रा योजना में रोजगार के आंकड़े छुपा कर चुनावी नैया पार लगाना चाहती है सरकार

2018 में एक करोड़ लोगों ने गंवाई नौकरी

जीएसटी का सबसे ज्यादा असर छोटे और मझोले कारोबारियों पर हुआ, जो देश में सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करते हैं, इससे बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं

खेतिहर तो फिर भी खाली

आर्थिक आरक्षण से मुख्य फायदा गैर-कृषक समुदाय को, कृषि पृष्ठभूमि से आने वालों की राह में कई अड़चन

सबको बुनियादी आय की गारंटी ही बेहतर विकल्प

बंटाईदारों और भूमिहीन खेत मजदूरों का तबका खेत मालिक किसानों की तुलना में काफी बड़ा, इसलिए कुछेक खेत मालिकों को ही रकम मुहैया कराना पर्याप्त नहीं, न्यूनतम आय गारंटी के लिए संसाधनों का टोटा भी नहीं

बुद्धू बना दिया यार!

ट्राइ के नए नियमों से केबल से लेकर डीटीएच उपभोक्ता तक परेशान, बढ़ा बिल जेब पर भारी

“शिकायतें हैं, ऐक्‍शन लेंगे”

नए फ्रेमवर्क से लेकर कंपनियों के बारे में भी शिकायतें आ रही हैं। उनकी शिकायतों के आधार पर जरूरी कार्रवाई भी हो रही है

“भारतीय सिनेमा के लिए सबसे अच्छा समय आना अभी बाकी”

अभी इस अर्थ में बदलाव आया है कि मुख्यधारा के सिनेमा में बहुत सारी अच्छी सामग्री आ रही है। पिछले दो-ढाई दशकों में हमने जो कुछ भी किया, वह विषयवस्तु में बदलाव है

नेहरू के बारे में कहा-अनकहा

किताब में लेखक ने नेहरू के अनगिनत भाषणों, पत्रों और आकाशवाणी पर उनके संदेशो में से सिर्फ वे ही पत्र और प्रकरण छांटे हैं जो नेहरू को लेकर रचे गए मिथकों और वास्तविक तथ्यों को अलग करते हों

स्मृतियों-इतिहास की समाधि

यह उपन्यास ऐ लड़की की निरंतरता लगता है, हर तरह से उसका विस्तार और उसको नई ऊंचाई पर लाने वाला भी।

महज देश नहीं मन की अंतर्यात्रा

यह यात्रा संस्मरण महज एक देश की यात्रा नहीं, बल्कि मन की अंतर्यात्रा का संवेदनशील ब्योरा भी है

ज्ञान-विरोधी विचारधारा

उच्च शिक्षा संस्थानों में जिस प्रकार की घटनाएं घट रही हैं, उससे लगता है, शोध पर गाज गिराई जा रही है

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