‘विकास’ के ‘अच्छे दिन’ घोटालों के करोड़ों से खरबों में पहुंचने के दिनों में बदल रहे हैं, क्षमता के अनुकूल रोजगार के वादे पकौड़ापरक रोजगार में बदल रहे हैं, और मध्यवर्ग बेचारा बना ‘विकास’ की मार झेल रहा है
नौकरियों का संकट बढ़ा तो एजुकेशन लोन बनाने लगा छात्रों को डिफॉल्टर, तीन साल में 51 फीसदी तक बढ़ गया एनपीए, अभिभावक और छात्र करने लगे कर्ज लेने से तौबा, लिहाजा देश के युवाओं को उच्च शिक्षा के प्रति आकर्षित करके बेहतर जिंदगी का सपना दिखाने के लिए धूम-धड़ाके से प्रचारित योजना सरकारी अदूरदर्शिता और कामचलाऊ रवैए की भेंट चढ़ गई
सरकारों के पल्ला झाड़ने और निजीकरण को तरजीह देने से हेल्थलकेयर इंडस्ट्री और मेडिकल टूरिज्म में तब्दील होती चिकित्सा व्यवस्थाझ आम आदमी को करने लगी बेहाल