राइमा सेन ने जब चोखेर बाली (2003) से आलोचकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया तब राइमा की तुलना उनकी नानी और दिग्गज अदाकारा सुचित्रा सेन (1931-2014) से होना लाजिमी था। इसमें कोई शक नहीं कि राइमा ने उम्मीदों का पहाड़ खड़ा कर दिया था। धीरे-धीरे राइमा खुद की ‘सोच’ वाली अभिनेत्री के रूप में विकसित हुईं। उन्होंने हिंदी और बांग्ला में अर्थपूर्ण सिनेमा लगातार में कई साल लगाए। गिरिधर झा के साथ बातचीत में उन्होंने कॅरिअर, फिल्म, अभिनेत्री मां मुनमुन सेन की राजनीतिक यात्रा और इन सबके साथ इस पर भी बात की कि आखिर क्यों महान अदाकारा उनकी नानी ने लोकप्रियता के शिखर पर एकांतवासी होना चुना। इंटरव्यू के चुनिंदा अंशः
पीएनबी के 2011 से अभी तक के सभी चेयरमैन और ऑडिटरों को इसके लिए जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए? फिर, बैंकिंग सेक्टर का रेग्यूलेटर आरबीआइ इस जिम्मेदारी से कैसे बच सकता है
‘विकास’ के ‘अच्छे दिन’ घोटालों के करोड़ों से खरबों में पहुंचने के दिनों में बदल रहे हैं, क्षमता के अनुकूल रोजगार के वादे पकौड़ापरक रोजगार में बदल रहे हैं, और मध्यवर्ग बेचारा बना ‘विकास’ की मार झेल रहा है
नोटबंदी, जीएसटी और अर्थव्यवस्थाे में आम तौर पर छाई निराशा को दूर करने के लिए सरकार ने चुनावों के मद्देनजर किसान और गरीब पर फोकस बढ़ाया, मध्यवर्ग को भ्रम में छोड़ा