अदालत के फैसले के बाद क्या यह मान लिया जाए कि अयोध्या राजनीति खत्म हुई या फिर राजनैतिक फायदे के लिए नए भावनात्मक और धार्मिक मुद्दों की तलाश शुरू हो जाएगी?
अगर कोर्ट ने विवादित स्थल पर अस्पताल या अयोध्या की बहु-सांस्कृतिक पहचान दिखाने के लिए भव्य संग्रहालय बनाने का आदेश दिया होता तो वह अनुच्छेद-142 का बेहतर इस्तेमाल होता
आशंका इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो कुछ कहा है, क्या उसे शब्दशः लागू किया जाएगा या जो विचार व्यक्त किए गए हैं उनको तोड़ा-मरोड़ा जाएगा
देश की सबसे ऊंची अदालत ने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने को गैर-कानूनी कृत्य माना है, लेकिन इस गैर-कानूनी कृत्य यानी अपराध का परिणाम क्या निकला
अयोध्या मामले में एक अहम पक्षकार और वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी लंबे समय से इसकी पैरवी करते रहे हैं। वे नब्बे के दशक में बनी बाबरी मस्जिद ऐक्शकन कमेटी के संयोजक और फिर उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील के साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव भी हैं। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले पर उनकी राय अहम है। उन्होंने फैसले के फौरन बाद इसकी समीक्षा के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की अपनी राय भी सार्वजनिक की। लेकिन बकौल उनके, इसका फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में ही लिया जाएगा। उन्होंने वरिष्ठ संवाददाता शशिकांत से बातचीत में फैसले की पेचीदगियों के बारे में विस्तार से बताया। मुख्य अंशः
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषंगी संगठन विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की रामजन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका रही है। विवादित स्थल पर राममंदिर बनाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद वहां पर भव्य मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। मंदिर आंदोलन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और धार्मिक स्थलों के दूसरे विवादास्पद मुद्दों समेत तमाम मसलों पर आउटलुक ने वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार से बातचीत की। प्रशांत श्रीवास्ताव के साथ हुई बातचीत में आलोक कुमार ने कहा कि अभी वीएचपी का पूरा फोकस मंदिर निर्माण पर है। साथ ही उन्होंने इस फैसले को देशहित और सभी पक्षों के हित में बताया। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंशः
छत्तीसगढ़ में 17 दिसंबर को बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक साल पूरा हो रहा है। इस दौरान वे बाहर और पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंद्वियों से अपनी स्थिति मजबूत करने में कामयाब रहे हैं। बकौल उनके, राज्य की आर्थिक स्थितियां बेशक बहुत ठीक नहीं हैं, फिर भी वे किसानों और आदिवासियों की समस्याएं दूर करने की कोशिश में भी जुटे हैं। इस पर हाल के दो विधानसभा उपचुनावों ने मुहर भी लगा दी है। राज्य में डेढ़ दशक बाद जनता को नया माहौल दिख रहा है। तीन-चौथाई बहुमत के साथ पार्टी में तीन प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ कर सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री इससे और मजबूत हो गए हैं। उनकी एक साल की उपलब्धियों, चुनौतियों और आगे की योजनाओं पर संपादक हरवीर सिंह और विशेष संवाददाता रवि भोई ने उनसे बातचीत की। मुख्य अंश: