वह लेखक हैं नहीं, थे। लिहाजा सुविधा के लिए बहुत सुविधा से भूतपूर्व लेखक कहे जा सकते हैं। आजकल के संक्षिप्तीकरण के युग को देखते हुए भूतपूर्व के ‘भू’ और लेखक के ‘ले’ को मिलाकर हम उन्हें ‘भूले’ नाम से पुकारेंगे। तो भूले जी लेखक थे, उस ‘थे’ को ‘हैं’ में बदलने के लिए वह बेताब रहते हैं।
महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर राजनीतिक नफे-नुकसान में उलझे ओडिशा और छत्तीसगढ़ इस बात को भूल गए हैं कि 57 फीसदी मीठे पानी को समुद्र के पानी में मिलने से कैसे रोका जाए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस वर्ष विजयादशमी पर अपना 91 वां स्थापना दिवस मना रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए यह यात्रा इतनी आसान और आरामदायक नहीं थी। दो बड़े प्रतिबंधों के बावजूद अपने मजबूत संगठन के सहारे यह न सिर्फ उठ खड़ा हुआ बल्कि पूरे देश में 50 हजार से ज्यादा शाखाएं स्थापित कीं
संगीतकार प्यारेलाल के छोटे भाई गणेश जब फिल्म जगत में आए तो उनकी प्रतिभा की काफी चर्चा हुई थी। कहा जाने लगा था, लक्ष्मी-प्यारे की कई रचनाओं के पीछे गणेश के बहुमूल्य सुझाव का योगदान है।
देश और दुनिया में बचपन बचाओ आंदोलन के जरिए बाल श्रम के उन्मूलन, बच्चों के खिलाफ हिंसा और उनके किसी भी तरह के शोषण को रोकने के लिए सालों से प्रयासरत और अपने इस प्रयास के लिए दुनिया के सर्वोच्च सम्मान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए गए कैलाश सत्यार्थी अब पूरी दुनिया में हाशिए पर पड़े बच्चों के लिए नीतिगत बदलाव की लड़ाई में जुटे हैं। कैलाश सत्यार्थी ने वर्तमान में किए जा रहे कामों और अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में आउटलुक हिंदी की संपादकीय टीम के साथ विस्तृत बातचीत की। यहां हम इस विस्तृत बातचीत का संपादित अंश दे रहे हैं:
पर्यावरण आंदोलनकारी, नर्मदा पदयात्री, पर्यावरण पर ढेरों किताबें लिखने वाले अनिल माधव दवे अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हो गए हैं। जरूरत भर के सामान से सजे उनके दफ्तर में दिनभर गहमागहमी रहती है। खांटी इंदौर के उच्चारण और मालवी मिठास के साथ वह पर्यावरण को गांधी के दर्शन और सिद्धांत के साथ जोड़ते हैं। वह मानते हैं कि भारतीय जीवन शैली सबसे अच्छी है जिससे हम थोड़ा-सा भटक गए हैं। जन चेतना, जन शिक्षा से इस भटकी हुई राह को पा लिया जाए तो पर्यावरण को कोई नष्ट नहीं कर सकता। इन तमाम मुद्दों पर आउटलुक हिंदी की सहायक संपादक आकांक्षा पारे काशिव के साथ उन्होंने कई बातें साझा कीं।
कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा या कोई भी पार्टी राज करे परिवार के संस्कार, नाम-काम सदा सत्ता की राजनीति को प्रभावित करते रहेंगे। फिर चाहे परिवार ‘गांधी’ हो या ‘संघ’