असमानताएं सामाजिक असंतोष को पैदा करती हैं और ऐसे नेताओं को जन्म देती हैं जो बदले में असमानताओं को बढ़ाते हैं, ट्रम्प का उदय इस ऐतिहासिक सामाजिक प्रक्रिया का कोई अपवाद नहीं, उनसे भारत कैसे निपटेगा यह अनिश्चित
आर्थिक उदारीकरण के पिछले तीन दशक के दौरान भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ ऐसा बदला है कि धन, सार्वजनिक आचरण से लेकर नेताओं का चरित्र तक सब कुछ महज कुर्सी के इर्द-गिर्द सिमट गया है और दलों का फर्क मिट गया है
कारोबारी माहौल, उत्पादन क्षेत्र की मंदी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मुनाफे पर कंपनियों का जोर आइआइटी के छात्रों को न सिर्फ बेरोजगार कर रहा है, उनकी जान भी ले रहा
सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल का दौर खत्म होने और मल्टीप्लेक्स आने के संक्रमण काल में किसी ने भी गांव-कस्बे में रह रहे लोगों के मनोरंजन के बारे में नहीं सोचा, ओटीटी का दौर आया तो उसने स्टारडम से लेकर दर्शक संख्या तक सारे पैमाने तोड़ डाले
तारीख बदलती है, शहर या राज्य बदलता है, बस बढ़ती जाती है क्रूरता और जघन्यता, बलात्कार के बाद सजा में देरी ऐसे मामलों की संख्या में लगातार इजाफा ही कर रही
संविधान मानवीय विचारों से भरापूरा है। उसमें न्यायोचित अधिकारों का विस्तार किया जा सकता है, मगर उसे बेमानी बनाने, बदल डालने की कोशिशें प्रगतिशील नहीं हो सकतीं