राजनैतिक पार्टियों और एनडीए तथा 'इंडिया' गठबंधनों के दावों के विपरीत इस बार लोकसभा चुनावों की जमीन अनिश्चित, सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन दोनों के लिए चुनाव में जीत सियासी वजूद बचाने का सवाल बना
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े और सबसे अहम चुनाव में सच के ऊपर झूठ का, असली के ऊपर नकली का साया मंडरा रहा, इस झूठ और फर्जीवाड़े को संभव बनाती है एआइ और डीपफेक की तेज विकसित होती तकनीक और कई टेक्नोलॉजी कंपनियां, क्या हैं खतरे
कोविड महामारी के बाद दर्शक थिएटरों में लौटे तो रोमांस, मारधाड़, ऐक्शन का मसाला और बड़े सितारों का जलवा लुभाने लगा, जवान, एनिमल, पठान और गदर 2 की कामयाबी क्या बताती है, क्या कंटेंट प्रधान फिल्मों का दौर फिर पिछड़ गया
राजनैतिक फंडिंग की मोदी सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से असंवैधानिक करार दिया, तो क्या तकरीबन छह साल से जारी योजना से राजनीति के रंगढंग में आए बदलावों को बदला जा सकेगा?, क्या चुनाव निष्पक्ष और परदर्शी हो पाएंगे?, क्या काले धन की पॉलिटिकल इकोनॉमी से मुक्ति मिल पाएगी?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार का एक बार फिर लालू प्रसाद की राजद को छोड़ जाना और वापस एनडीए में आना उनकी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचायक माना जाए या कुर्सी के लिए वैचारिक अवसरवाद का ऐतिहासिक प्रदर्शन?
कॉलिंस के शब्दकोश ने एआइ को 2023 का शब्द बताया, यथार्थ की जगह आभास, असल की जगह नकली मेधा, आदमी की जगह रोबोट, इनसानी विवेक की जगह अलगोरिद्म, और स्वतंत्रेच्छा की जगह नियति- कल की दुनिया इन्हीं से मिलकर बननी है, सोशल मीडिया की लत उस बड़ी बीमारी का महज लक्षण भर