लगातार चुनावी हार से गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल तीखे हुए, मगर पार्टी में जान फूंकने के सूत्र शायद अभी भी धुंधलके में, ऐसे में कौन बनेगा तारणहार
चार राज्यों, खासकर सियासी तौर पर सबसे अहम उत्तर प्रदेश में दोबारा जीत दर्ज करके भाजपा ने जता दिया कि उसके चुनावी जीत के सूत्रों की काट तलाशने में विपक्ष है नाकाम
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में नई सियासत की राह खुलने की संभावना प्रबल, इसी वजह से लखनऊ की कुर्सी हर दावेदार के लिए ही नहीं, देश के लिए भी है खास
महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के संकट, रोजी-रोटी के सवालों को छोड़कर सत्तारूढ़ और सभी विपक्षी पार्टियां जाति गोलबंदी और ध्रुवीकरण पर उतरीं, लेकिन लोगों का मूड हालात बदलने की दिशा में
पुष्पा हो या बाहुबली, बॉलीवुड के सामने यह खतरा कि अब दक्षिण भारतीय सिनेमा के उत्तर भारत में विस्तार को रोकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन; पुष्पा में अल्लु अर्जुन के किरदार की तरह, यह झुकेगा नहीं
सत्तारूढ़ पार्टियों के लिए ही नहीं, विपक्षी दलों के लिए भी ये चुनाव अग्निपरीक्षा सरीखे, ये चुनाव देश की अगली सियासत का भी जनादेश सुनाएंगे और राजकाज के एजेंडे को भी बदल डालने का पुख्ता संदेश देंगे
इस साल अनेक संभावनाओं के दरवाजे खुल सकते हैं तो आशंका और निराशा के काले बादलों के साए भी घने और डरावने, किस मद में क्या है इसकी झोली में?
लगातार बदलते मानदंडों से नई-नई पृष्ठभूमि से उभरती विजेताओं की जटिल दुनिया को बेरंग, बेमकसद और बेवजह करार देना नाइंसाफी होगी